बिजली कब बना?



कृत्रिम तरीकों से बिजली पैदा करने ओर उसे अपने कार्यो मे प्रयोग करते हुए मानव को अभी 140 वर्ष के लगभग ही हुए हैं। आकाशीय विद्युत का पता लगाने का कार्य सबसे पहले बेंजामिन फ्रैंकलिन ने किया था। उन्हें ही बिजली का आविष्कारक माना जाता है। उन्होने तेज वर्षा के समय पतंग उडाकर और उसकी डोर में धातु की चाबी बांध कर पहली बार विद्युत की शक्ति का अनुभव किया था।
बिजली कब बना?




लेकिन ईसा से लगभग 600 वर्ष पूर्व से ही यूनान के लोगो को बिजली के विषय में पता था। वास्तव में इलेक्ट्रिसिटी शब्द की उत्पत्ति ग्रीफ भाषा के इलेक्ट्रोन शब्द से ही हुई है। उन्हे ज्ञात था कि यदि एक अम्बर के टुकडे को समूर से रगडा जाए तो उसमे हल्के-फुल्के तिनको ओर कागज के टुकड़ों को उठाने की शक्ति आ जाती है।




लगभग 190 साल पहले इटली के एक वैज्ञानिक एलेसेंड्रा वोल्टा ने विद्युत धारा पैदा करने की युक्ति का आविष्कार किया था। जिन्हें कृत्रिम बिजली का आविष्कारक माना जा सकता है। उन्होंने तांबे की और जस्ते की छड़ को गंधक के हल्के अम्ल मे डुबाकर विश्व की सबसे पहली विद्युत-सेल बनाई थी।




बिजली कब बना?


इसके बाद ब्रिटेन के माइकल फैराडे ने सन्‌ 1831 में विद्युत चुम्बकीय प्रेरणा का आविष्कार करके बिजली उत्पन्न करने वाले एक जेनरेटर का निर्माण किया। विद्युत का वास्तविक रूप में उपयोग माइकल फैराडे के इसी आविष्कार के बाद से होना आरम्भ हुआ।




जेनरेटर चुम्बक और तार की कुंडलियो से बना होता है। जेनरेटर में आमतोर से एक चुम्बक होता है, जिसके ध्रुवो के बीच मे तार की एक कुंडली तेजी से घूमती है। इसी से तार की कुंडली मे बिजली उत्पन्न होती है।




जेनरेटर को चलाने के लिए ऊंचाई से गिरते पानी या भाप का इस्तेमाल किया जाता है। वर्तमान में जेनरेटर पेट्रोल या डीजल वाले इंजन से भी चलाए जाते है। पानी से जेनरेटर चलाकर बिजली उत्पन्न करने के लिए बांधो ओर झरनों के पास बिजली घर बनाए जाते हैं। गिरते पानी की धार से बडी-बडी टर्बाइनों के पहिए घुमाए जाते हैं। इन पहियो की सहायता से जनरेटर की तारो की कुंडली घूमती है, जिससे विद्युत उत्पन्न होती है। बिजली उत्पादन के लिए आजकल विशाल जेनरेटर प्रयुक्त होते हैं।





बिजली क्या है, इसे सरल रूप में यूं समझा जा सकता है। विश्व के सभी पदार्थ बहुत ही सूक्ष्म-कणों के बने होते है। इन कणों को परमाणु कहा जाता है। परमाणु ओर भी नन्हे नन्हे कणों से मिलकर बना होता है। इन्हें इलेक्टॉन, न्यूट्रॉन, प्रोटॉन आदि कहते है।इलेक्टॉन एक नाभिक (न्यूक्लियस) के इर्द-गिर्द कुछ निश्चित कक्षाओं में चक्कर लगाते है। नाभिक प्रोटॉन और न्यूट्रॉन से मिलकर बना होता है। न्यूट्रॉन ओर प्रोटॉन तो अपने केंद्र में स्थित रहते है, परंतु चारों ओर घूमने वाले इलेक्टॉनों को जब तेजी से धक्का दिया जाता या ठेला जाता है, तो ये उछलकर एक से दूसरे परमाणु में जा पहुंचते हैं। बिजली की उत्पत्ति मे यही क्रिया होती है।





विद्युत-धारा किसी पदार्थ में से दोडते हुए इलेक्ट्रॉनो का ही परिणाम है। दो पदार्थों की घ॒र्षण क्रिया मे भी यही होता है। एक पदार्थ के इलेक्ट्रॉन रगड से उत्तेजित होकर दूसरे पदार्थ में पहुच जाते हैं। वास्तव में इलेक्टॉनों पर ऋणात्मक आवेश होता है और इस आवेश की गतिशीलता ही विद्युत-धारा की जननी है। विद्युत धारा को दौडाने के लिए तांबे के तारों का प्रयोग किया जाता है, क्योंकि इसमें होकर विद्युत-धारा तेजी से दौडाई जा सकती है। तांबा विद्युत का एक अच्छा सुचालक है। लेकिन सुचालक पदार्थों के साथ कुचालक पदार्थों की भी आवश्यक्ता पडती है, क्योंकि सुचालक पदार्थ बिजली के लिए रास्ता बनाते हैं और कुचालक पदार्थ उस इधर-उधर बिखरने से रोकते हैं। तांबे के तार पर एक कुचालक पदार्थ की तह चढाई जाती है।





बिजली, बिजली घर से उत्पन्न होकर तारों द्वारा शहर के कारखानों और घरों में पहुंचती है। यहां मशीनों, बल्बो, अंगीठियो, रिफ्रिजिरेटरों, रेडियो आदि उपकरणों को चालू करने के लिए हमें केवल बटन दबाने भर की जरूरत पडती है। विद्युत-धारा से इन्हे शक्ति मिलती है और इनके कल-पुर्जे अपना-अपना कार्य शुरू कर देते हैं।





बिजली-धारा के मापन के लिए एम्पियर इकाई का उपयोग किया जाता है। इसे एमीटर कहते है। बिजली-विभवातर को मापने के लिए वाल्ट पमाने का उपयोग किया जाता है। इस उपकरण को वोल्ट-मीटर कहते है। बिजली-व्यय का मापन के लिए वाटमीटर का प्रयोग होता है जो यह बताता है कि कितनी बिजली शक्ति काम में आई है।





अमेरिका के वैज्ञानिक टॉमस अल्वा एडीसन ने विद्युत बल्ब का आविष्कार कर विश्व के काने-कोने में प्रकाश फैला दिया। एडीसन ने बिजली से चलने वाले अनेक दूसरे यत्रों का भी आविष्कार किया।







जैसा कि ऊपर बताया जा चुका है कि कृत्रिम बिजली बनाने के लिए बडे बडे जेनरेटरों का प्रयोग किया जाता है। डायनुमा या जेनरेटरों में एक विशाल चुम्बक की व्यवस्था होती है। इसके दोनों ध्रुवों (नार्थ पाल और साउथ पाल) के मध्य तांबे के तारो को लपेट कर बनायी गयी कुंडली तेजी से घुमायी जाती है। कुंडली के दोनों छोरो का सम्पर्क धातु के दो छल्लो से होता है। प्रत्येक छल्ले का सम्पर्क कार्बन के ब्रुशों से होता है। कार्बन ब्रुशो से विद्युत-धारा ले जाने वाले तारो का संबध होता है। तांबें के तार वाली कुंडली जब तेजी से घूमती है, तो विद्युत चुम्बकीय प्रेरण (induction) के प्रभाव से बिजली का उत्पादन हाता है। यही बिजली धारा की सहायता से हमारे घर और कारखानों तक पहुंचती है।



भारत में बिजली कब आई

फ्लौरी एंड कम्पनी ने कलकत्ता में सन 1879 में बिजली का प्रदर्शन किया. भारत में व्यावसायिक रूप से बिजली में 1897 में आई जब इंग्लैंड की किलबर्न एंड कम्पनी ने कलकत्ता में बिजली सप्लाई हेतु इंडियनइलेक्ट्रिक कम्पनी बनायी.

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